Tuesday, February 5, 2008

आवाज़ ..















कहीं तो भीतर मन से वो आती है आवाज़ ,
केहना चाहे कुछ - कुछ केह जाती है आवाज़ ,
इतना आसां होता नहिं इसपे काबू कर पाना ,
कभी है दिल को छू ले- कभी नम पड़ जाती है अवाज़।

वो है बयां कर दे- सबके अरमाओं का सैलाब ,
जिसके बिना है अधूरा- हर सपना हर ख्वाब ,
युं तो हैं पिरोते हम- इसमें शब्दों के मोती ,
पर इस माला की चमक- हर ज़ुबां पे नहींहोती ,
युं कभी किसी के दर्द में- फूट पडे है ये आवाज़ ,
तो कभी खुशियों का रास्ता बन जाती है आवाज़ ।

कहीं क्रान्ती का भाषड़- तो कहीं ईश्वर की याद ,
कहीं प्रकृति की देन - कहीं पूर्वज आशिर्वाद ,
जिसे चाहे वश में कर ले - ये हैं इसके अन्दाज़ ,
दुनिया को शीतल करे- ये अनमोल आवाज़ ।

जो समझे थे ना कद्र इसकी- वो हैं समझते आज़ ,
जिसके है वश में ये- उसकी उसकी चलती सरकार ,
इससे चलता संसार- इससे बनतीं सौगात ,
इसके बिना सुख चैन नहीं- नहीं मिले सवर्ग का द्वार ,

मन में है रेह जाये कहीं जो - उसे केहते हैं हम आस ,
और ज़ुबां पे आके लफ्ज़ बने जो- वो केहलाती आवाज़ ।।